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रविवार, 2 जुलाई 2017

पटना में नरेन

पटना में नरेन
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तय कार्यक्रम के अनुसार आज सुबह नरेन का फोन आया। फोन समय से पहले ही आ गया कि छोटे बेटे को बाइक से भेज दिया है तुम्हें लिवा लाने। मुझे याद आ गया वो दिन जब मेरा छोटा बेटा पहली बार नरेन के कंधे पर चढ़ कर कोलकाता का चिड़िया खाना घूम रहा था। वक्त कितनी तेजी से आगे निकल गया। आज नरेन का छोटा बेटा अनुराग बाइक से मुझे लेने आ रहा है! अनुराग अच्छा चित्र भी बनाता है, और भी कई गुन हैं उसमें। गुनी है।
पटना आया तो मेरे ध्यान में है कि यह वह शहर है जहाँ देश में कहीं से भी निकलनेवाली साहित्यिक पत्रिका कहीं से भी ज्यादा पढ़ी जाती रही है। हिंदी मैथिली के कई नाम और चेहरे जेहन में हैं कि उन से मिलना है। इनमें एक नाम और चेहरा हिंदी के सिद्ध गीतकार नचिकेता जी का भी है। उनके उन भजनों को भूलना मुश्किल है. एक समय वे भजन साहित्य की गीतात्मक अभिव्यक्ति की सराहनीय ऊँचाई पर थे। लेकिन जानकारी के अनुसार वे अब शारीरिक परेशानी के कारण बाहर कम ही निकलते हैं। जब उनसे पहली मुलाकात हुई थी तब मैं आलोचना में सक्रिय नहीं था। उनकी शिकायत थी कि हिंदी आलोचना ने गीत को कभी मुख्य धारा के साहित्य के रूप में नहीं स्वीकार किया। मैंने तब भी माना था कि वे सही कह रहे हैं। कबीरदास अपने लिखे को गीत कहते थे--- तुम जिन जानो गीत है, यह निज ब्रह्म विचार। यानी गीत तो है ही यह ब्रह्म विचार भी है। कबीर जयदेव को भी गुरु स्थान देते थे। कृष्ण काव्य की शक्ति के स्रोत में जो कई किताबें हैं उनमें गीत गोविंद का अपना महत्त्व है। जयदेव और कबीर के बीच के कवि विद्यापति भी अभिनव जयदेव कहलाते हैं। उनका साहित्य गीत शक्ति से ही मिथिला का कंठ हार और मैथिल ललना के राग विराग का साथी बना हुआ है। भारत की जिस एक साहित्यिक किताब को नोबेल पुरस्कार मिला है वह भी रवींद्रनाथ टैगोर की किताब गीत की है--- गीतांजलि। तो गीत को गंभीरता से लेना चाहिए। कहा तो था, लेकिन यह कहना भी आज नचिकेता जी से पहले मेरे मन में था कि मैं ने भी तो गीत पर नहीं लिखा है। प्रसंगवश बात उठी तो क्या कहूंगा! वहाँ गया तो कई लेखकों कवियों से मुलाकात हो गई। रंजीता सिंह, सुधा मिश्र, धनंजय श्रोत्रीय और कई लोग जो नचिकेता जी से मिलने आये थे। नचिकेता जी ने गीत की अनदेखी किये जाने की बात फिर उठा दी। आते समय कविकुंभ के तीन अंकों की प्रतियां मिल गई। नचिकेता जी के गीत की एक किताब भी मिली, इस पर अब न लिखा तो जानता हूँ कि अपराध होगा। तो इस तरह पटना में नरेन। लौटकर आया पिछले बीस साल की अपनी अपनी करनी और अकरनी पर बात की। कुछ निजी और पारिवारिक बातचीत भी हुई खास कर भाभी से।
चलने लगा तो नरेन ने कहा कि यार दिल नहीं भरा। मैं ने कहा उम्र हो गई है। तुम भी थोड़ा आराम कर लो और मैं भी जाकर थोड़ा सुस्ता लेता हूँ। आता जाता रहूँगा।
आ तो गया अपने अभी के ठिकाने पर। लेकिन याद आ रही है नरेन से पहली और पहले दौर की मुलाकातों की। वह सब फिर कभी, जल्दी ही।